रावण राज यहाँ पर भाई (RAVAN RAJ YAHAN PAR BHAI) Poem by Nirvaan Babbar

रावण राज यहाँ पर भाई (RAVAN RAJ YAHAN PAR BHAI)

रावण राज यहाँ पर भाई, राम कहाँ पर है,
पाप ही पाप है चारों ओर, मरते बस हम बे-चारे हैं,

मन अपना है अब बहुत ही छोटा, बुड़ापे सी जवानी है,
राम को खोजते हम रहते, अब वो भी कहीं छुपते-छुपाते हैं,

राम कभी जो दुःख हरते थे, अब दुःख उनका भी साथी है,
कभी था जिनका राम से नाता, वो अब रावण के साथी हैं,

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