Ravan Ka Amrit (Hindi) रावण का अमृत Poem by S.D. TIWARI

Ravan Ka Amrit (Hindi) रावण का अमृत

Rating: 5.0

युगों से, रावण का सफाया करते
मगर, राम स्वयं भी मर जाया करते।
रावण का अमृत नष्ट न हो पाता
गिरे बीज, फिर से उग आया करते।
पाकर, आसुरी पानी और खाद
फिर से, हरे भरे हो जाया करते।
जब रावण फैलाता, पांव धरा पर
तब राम भी, प्रकट हो जाया करते।
रावण पाता, मुफ्त में आसुरी बल
राम, तप कर शक्तियां पाया करते।
रावण-अमृत नष्ट न करते पूरा
बाणों से राम, बस सुखाया करते।
रावण की जगह अमर हो जाते राम
अमृत छीन क्यों न पी जाया करते।

एस० डी० तिवारी

Saturday, October 24, 2015
Topic(s) of this poem: hindi,philosophy
COMMENTS OF THE POEM
arpita pandey 12 February 2018

Add a comment.nyc poem

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Rajnish Manga 24 October 2015

अति सुंदर. रावण मर कर भी क्यों नहीं मरता? क्यों बार बार अत्याचार करने आ धमकता है? इस समस्या का शायद कोई हल नहीं है. एक सारगर्भित कविता.

1 1 Reply
Abdulrazak Aralimatti 24 October 2015

Verily, a lovely poem depicting the philosophy of life where the virtuous struggle and win in the end but remain humble the whole life.....10

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