युगों से, रावण का सफाया करते
मगर, राम स्वयं भी मर जाया करते।
रावण का अमृत नष्ट न हो पाता
गिरे बीज, फिर से उग आया करते।
पाकर, आसुरी पानी और खाद
फिर से, हरे भरे हो जाया करते।
जब रावण फैलाता, पांव धरा पर
तब राम भी, प्रकट हो जाया करते।
रावण पाता, मुफ्त में आसुरी बल
राम, तप कर शक्तियां पाया करते।
रावण-अमृत नष्ट न करते पूरा
बाणों से राम, बस सुखाया करते।
रावण की जगह अमर हो जाते राम
अमृत छीन क्यों न पी जाया करते।
एस० डी० तिवारी
अति सुंदर. रावण मर कर भी क्यों नहीं मरता? क्यों बार बार अत्याचार करने आ धमकता है? इस समस्या का शायद कोई हल नहीं है. एक सारगर्भित कविता.
Verily, a lovely poem depicting the philosophy of life where the virtuous struggle and win in the end but remain humble the whole life.....10
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