Pukaar Poem by Rakesh Sinha

Pukaar

जीवन में सफलता के दो-चार सोपान चढ़ते ही
दौलत और सत्ता का नशा सर चढ़कर बोलने लगता है,
इंसान अपने अहं के वशीभूत होकर मदमस्त डोलने लगता है |
कोई सांसद तो कोई विधायक,
कुछ नहीं तो उनका परिचारक,
कोई उद्योगपति तो कोई बाहुबली,
और सबके पीछे चमचों की टोली |
अपने फायदे के लिये देश और समाज का अहित करने में
क्षणभर भी नहीं गंवाते ये लोग,
सारी सुख-सुविधायें रहे हैं ये भोग |
करते ये सब नानक और कबीर की बातें,
मगर रंगीनियों में कटती इनकी रातें |
पर गलत लोगों को अपना नेता चुनने के लिये हम ही हैं जिम्मेदार,
चोरों की ही बना रहे हैं थानेदार |
आखिर क्यों भ्रष्ट नेताओं के पीछे चलता है जनता का हुज़ूम,
क्यों ऐसे लोगों के सब कदम रहे हैं चूम |
सीधे-सच्चे लोगों का तो जीना है मुहाल,
अपने-अपने कोनों में दुबके पड़े हैं निढाल |
चौंकिये मत ऐसे लोग अब भी हैं मौज़ूद,
पर गुमनामी के अंधेरे में छिपा है उनका वज़ूद |
आज देशवासियों से यही है पुकार,
करें हर क्षेत्र में अच्छे लोगों को स्वीकार |
साथ दें उन लोगों का
जिनके दिलों में निजहित से देशहित का स्थान है उंचा,
याद रखें कि
देशप्रेम और इंसानियत से बढ़कर कोई धर्म नहीं है दूजा,
सच्ची यही इबादत, सच्ची यही है पूजा |
जय हिंद |

Monday, July 6, 2015
Topic(s) of this poem: patriotic
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