Pattharon Ka Shahar (Hindi) पत्थरों का शहर Poem by S.D. TIWARI

Pattharon Ka Shahar (Hindi) पत्थरों का शहर

पत्थरों का शहर

महानगर, है ये मगर, एक पत्थरों का शहर।
पत्थरों का ढांचा ही, यहाँ पर होता है घर।


भरी भीड़ में भी अकेले का सा सबब होता है ।
किसी के लिए किसी का रुकना भला कब होता है ।
अजब अजब के काम, लिए दौड़ते होते हैं सब,
करने का उनका रंग ढंग, सबका गजब होता है।
कभी भी नहीं सो पाता, जागता है आठों पहर।
महानगर ....

पत्थरों की इमारतों में, पत्थरों की सजावट।
भांति भांति की आकृति और मूर्ति की बनावट।
बड़ा होता है जिसके घर, लगा हो महंगा पत्थर,
पत्थरों का रंगीन फर्श, पत्थर का ही चौखट।
निर्माणों में कहीं खोयी, संस्कृति की धरोहर।
महानगर ...

पत्थरों की सडकों पर, सरपट दौड़ते वाहन।
जाने ही कितनों को, रोजाना रौंदते वाहन।
घायल को भी देख कर, कोई नहीं पिघलता
बगल से गुजरता, जैसे दिल भी हो पाहन।
ईमारत, सड़क, घर सभी, सोच भी पत्थर।
महानगर ...

हवा हो जितनी काली, उतना बड़ा नगर है।
दौड़ते दिखते सब हैं, खाली न दिखे डगर है।
चाँद, तारे हैं गुम से, धूप बरसात भी कम से;
पशु, परिंदों से दूर, इंसानों का अजायबघर है।
दर्शन के लिए संभाले, रखे होते हैं खँडहर।
महानगर ...

पेट की खातिर, आने वाला हर शख्श इधर।
बना ही लेता है, चार दीवारें, जोड़ कर पत्थर।
कुछ भी करके, कमा ही लेता है पैसा हरेक;
और यहाँ आकर, इसी के रंग में जाता है ढल।
बिक जाता है नकली माल, दवाई में जहर।
महानगर ...

तेज स्वभाव होता, समय का अभाव होता।
पीने को कोक, खाने को बर्गर, पाव होता।
पत्थर की मेज पर, खड़े खड़े ही खा पी लेते,
प्रेमियों के लिए बेंच, झाड़ों की छांव होता।
सिर पर लिये ढोता, हरेक चिंताओं की लहर।
महानगर ...

झोपड़ी के बगल, ईमारत आलीशान होती।
चलने की पटरी पर, चल रही दुकान होती।
अपने लिए जीते सभी, अपने लिए मर जाते,
गाड़ी और लिवास से, इंसान की पहचान होती।
किसी के लिए, कभी भी, नहीं सकता ठहर।
महानगर .....

- एस० डी० तिवारी

Monday, April 10, 2017
Topic(s) of this poem: satire,society
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Everything in a city is of stones, even heart of people also go stone and their greatness is by the cost of stone put in their homes.
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