Nahak That नाहक ठाट Poem by S.D. TIWARI

Nahak That नाहक ठाट

रात दुखदायी जिसकी, वह सो नहीं पाता
जश्न की रात में भला, कोई कहाँ सोता
कोई कहाँ सोता, रात भर मनाता जश्न
और भी रहें सुखी, इसकी ना करता यत्न
अन्य की भी सोचे, दिखाए बिन नाहक ठाट
चैन भरी नींद में, कटती है उसकी रात

S. D. Tiwari

Wednesday, June 17, 2015
Topic(s) of this poem: philosophy
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