Mumbai Ka Dard (Hindi) Poem by S.D. TIWARI

Mumbai Ka Dard (Hindi)

मुंबई का दर्द

अपने दीवानों पर, खजाना प्यार का लुटाती है।
मुंबई! मगर, क्यों इस कदर, दर्द सहती जाती है।
बेपनाह मुहब्बत में तेरी, हो चुके हैं कैद लाखों
फिर भी शर्मीली कितनी, किसी से न कह पाती है।
सुकून से बैठती न तू, जब देखो दौड़ती रहती
सुबह हो या शाम हो, सडकों पे उमड़ जाती है।
घर से तो निकल पड़ती जोश में तड़के ही तू
किन्हीं चौराहों पर, जाकर, कभी सुस्ताती है।
लोग मचल जाते हैं देख, सावन भादों की फुहार
और बारिशों के पानी में, तू है कि थम जाती है।
बख्शा है ऊपर वाले ने, सभी ओर ही पानी तेरे
समुन्दर के किनारे रह के प्यासी रह जाती है।
तेरी जमीन से तुझे, मुहब्बत बेइम्तहां मुंबई
छूने आसमां को लिए हौसला बढ़ जाती है।
धन कुबेरों का मजमा, अप्सराएं का नाच भी है
दीवानों को अपने मानो, जन्नत दिखाती है।
तेरी अस्मत से कर, होते हैं खिलवाड़ कितने
बेशर्मियां भी करते और तू देखती रह जाती है।
दल रहे होते हैं तेरे, दीवाने ही छाती पे मूंग
बेशुमार प्यार तेरा, चुप ही सह जाती है।

(C) एस० डी० तिवारी

Tuesday, May 31, 2016
Topic(s) of this poem: hindi,places
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success