Muhabbat Ka Khilauna (Hindi) मुहब्बत का खिलौना Poem by S.D. TIWARI

Muhabbat Ka Khilauna (Hindi) मुहब्बत का खिलौना

मुहब्बत का खिलौना

मुहब्बत का खिलौना कोई गह गया।
संभाल पाते कि जाने कहाँ वह गया।
बना के रखे थे ख्वाबों के घरौंदे
चली जोरों की आँधियाँ तो ढह गया।
सजाये रखे रात भर हसीन सपना
खुली आँख जब, रौशनी में सुबह गया।
चलते चलते इतनी दूर चले गये
साथ का कारवां पीछे ही रह गया।
दिल के जख्म अभी कल तक जो हरे थे
वक्त के साथ ही दर्द पीछे बह गया।
गैरों की बातों में उलझा लिये खुद को
उम्र का वक्त कमबख्त बेवजह गया।
कोई न कोई दर्द हर कोई लिये था
जहाँ में कोई सह तो कोई कह गया।

- एस० डी० तिवारी

Thursday, February 25, 2016
Topic(s) of this poem: hindi,love
COMMENTS OF THE POEM
Abhilasha Bhatt 27 February 2016

Beautiful....a beautiful poem......all of your poems are full of simplicity.....thank you for sharing :)

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