मनाना तो पडेगा ... manana to padegaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मनाना तो पडेगा ... manana to padegaa

मनाना तो पडेगा

काश! तुम मेरे होते
सब लोग मुझे देखते होते
में भी शरमाकर यु आँखे फेर लेती
होले होले सपने भी संजो लेती।

क्या होती ही ये सुखद पीड़ा?
जिसने किसी को ना छोड़ा!
बात बात में अपना राग आलापती है
किसी के मनमे छोटापा और किसी के मोटापा ला देती है.

मेंने ना मानी देल की एक भी बात
मुझे याद है आज भी वो सुनहरी रात
मैंने दिया वचन, अंत तक निभाने को
कह भी दिया 'में तैयार हूँ चलने को '

ना जाने वो क्यों असमंजस में थे?
बार मेरी और देख कर टकटकी लगाते थे
कुछ गहन सोचे में थे ओर फिर चुप हो जाते थे
मुझे भी डर के मारे असंख्य बिचार आ जाते थे।

ये प्रेममात्र की कोरी कल्पना नहीं है
पूरा जीवन व्यतीत करना यही है
ना कितने संकट और विडंबनाएं आएगी
कितना विलम्ब करवाएगी और इम्तेहान भी लेगी?

जीवन का कितना बड़ा कड़वा सत्य सामने है
वो भी खड़े उलझन में मेरे सामने है
'सामना करेंगे डटकर और पीछे नहीं हटेंगे'
मैंने सांस भरकर कह दिया 'प्यार हम जरूर करेंगे'

लोग कहते है प्यार कोई आसान डगर नहीं
इसमें आजकल और अगर मगर नहीं
कूद गए समंदर में तो फिर तैरना तो पडेगा
जो भी आएगा सामने उसे 'जी' कहना और मनाना तो पडेगा

Sunday, October 12, 2014
Topic(s) of this poem: poem
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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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