तन से प्रेम, करे हर कोई,
मन की सुध, कोई जाने ना,
अपना प्रेम है, कृष्ण कन्हाई,
तन को, कुछ भी, माने ना,
रम जा मन मैं, मन मैं शाम,
मन मैं ही बसते हैं श्री राम,
मन मैं राधा, मन मैं सिया है,
मन तो मन मैं, रम जाता है,
मन तो, तन को, ना पहचाने,
मन को, अंतर ही भाता है,
मन मैं मीरा, शाम को रमती,
मन मैं संतोषी रमती राम,
मन के मिलते, सब मिलता है,
तन मिटटी, इसका क्या मान,
सांझ सवेरे, मन की व्यथा का,
यादें करतीं रहीं बखान,
मन को कोई, समझ ना पाया,
मन मंदिर है, मन ब्रहमाण्ड,
मन की चाल है, नीर के जैसी,
निर्मल धारा, चंचल चाल,
मन ग्रंथों मैं, ग्रन्थ बड़ा है,
सबसे बड़ा है, मन का ज्ञान
निर्वान बब्बर
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