Maa Ko Chitthi (Hindi) माँ को चिट्ठी Poem by S.D. TIWARI

Maa Ko Chitthi (Hindi) माँ को चिट्ठी

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माँ को चिट्ठी

तब तू दूर थी आज मैं तुझसे दूर हूँ
तब तू मजबूर थी आज मैं मजबूर हूँ।
तू पैसे कमाती, मेरा भविष्य सवारने
मै भी कमा रहा हूँ, मेरे बच्चे पालने।
न तेरी गलती थी. न मेरी गलती है
हालात के वश ही, दुनिया चलती है।
मैं बड़ा हुआ, पीके शिशु सदन का दूध
अब तू पी रही है, वृद्धाश्रम का जूस।
तेरी पतोहू रोज रोटी बना नहीं सकती
तू है की पिज्जा, बर्गर खा नहीं सकती।
पैसे के लिए हम दोनों ही कमाते है
मंहगाई में, तब जा के घर चलाते हैं।
कई बार मन को मारा, पैसे के कारण
तुझे कमी न होने दूंगा, मेरा है ये प्रण।
यूँ थोड़े में भी, कमी नहीं खलती थी
क्योंकि पूरी दुनिया थोड़े में चलती थी।
तब पैसे से अधिक प्यार का महत्त्व था
अपनेपन में जीने का सारा तत्व था।
आज पैसे से ही आदमी का अस्तित्व है
निर्धन का भला कोई कहाँ व्यक्तित्व है।
पैसे की तंगी में, कमाने को दूर होते
ज्यादा हो जाता तो, अपनों से दूर होते।
हमारी ही नहीं, दुनिया की ये बात है
बुढ़ापे में पाना, हमें भी यही सौगात है।
जग में अकेले ही आना और जाना है
समय के अनुरूप ही जीवन बीताना है।
तुम फोन से नित्य बात करती रहना
और अपनी कुशल क्षेम कहती रहना।

एस० डी० तिवारी

Friday, January 22, 2016
Topic(s) of this poem: relationship,satire,hindi
COMMENTS OF THE POEM
Abhilasha Bhatt 22 January 2016

A tremendous poem...loved it...thank you for sharing :)

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