Lips Speak Poem by Tribhuvan Mendiratta

Lips Speak

Rating: 5.0

नयनो में जब बात होने लगी
मिली तुझसे नज़र, दिल में लहरें उठने लगी
मच गयी सनसनी तन बदन में,
रोम रोम पुलकित होने लगे.
रेशमी जुल्फ़ों की मुलायमता,
लाजवाब खुशबू बदन की,
रुखसार की लालीमा,
थरथराते लब गुलाबी,
साँसों से साँसे टकराने लगी,
बंद आँखों में ही बात होने लगी
मुद्दतों रहे खामोश लब अब थरथराने लगे है।
दिल को ये बात समझाने लगे हैं।
छू गयी आपसे उँगलियाँ जब मेरी.
सुर्ख लब थरथराने लगे अब,

Lips Speak
Friday, March 6, 2015
Topic(s) of this poem: love and art
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
touch makes emotions flow
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success