Kitne Khudgarj Ye Duniya Vale Hai Poem by milap singh bharmouri

Kitne Khudgarj Ye Duniya Vale Hai

कितने खुदगर्ज ये

कितने खुदगर्ज ये दुनिया वाले है
फरेब का अक्स ये दुनिया वाले है

जगह मुक्कदस और जहन फरेबी
मतलबी प्यार ये दुनिया वाले है

किसी को तडफता देख हंसते है
कितने संगदिल ये दुनिया वाले है

मेरा मेरी और ये धन -दौलत बस
भ्रम में भटकते ये दुनिया वाले है

अपना रुतवा, रोटी, और जगह के लिए
खून के प्यासे ये दुनिया वाले है

सर झुका 'अक्स' खुदा के दर पे ही
खुद भिखारी ये दुनिया वाले है

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
the poem written by milap singh tells about the a phase of human nature.
COMMENTS OF THE POEM
Gajanan Mishra 10 December 2012

good poem Milap. Thanks. Acche kabita.

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