Kitana Roi Hogi Heer कितना रोइ होगी हीर Poem by S.D. TIWARI

Kitana Roi Hogi Heer कितना रोइ होगी हीर

रब्बा!
मेनू होंदा कलेजे विच पीर
सोच, किन्ना, रोई होगी हीर
घर दी दीवारां जालिम, सिगीं जेलखाना
होगा बना जे दुश्मन, सारा जमाना
पांवा विच, होंगी पड़ी जंजीर
किन्ना रोई होगी हीर

खाट बिछौना छड, सोयी होगी धरती उत्ते
सुध बुध खोई फिरदी होगी वो इत्थे उत्थे
दिल विच चुभोई होगी तीर
किन्ना...

भरी हुई दुनिया विच, ताकी होंगी अखां
काली काली रातां, काटी होंगी कल्लां
झर झर बहाई होगी नीर

खाना ते पानी दा, भूख ना प्यास होगी
रांझणा दे आवन दा, हरदम आस होगी
अंसुअन भिगोई होगी चीर

ले के फरियाद अपनी आई होगी द्वार तेरे
माथा पटक के साईं, लेवण अरदास तेरे
बनके मोहब्बत दी फ़कीर

लोकां दी सताई होगी, होगी मजबूर वो
जहर दा निवाला खाई, हुई मशहूर वो
तूने कैसी लिखी तकदीर


(C) एस० डी० तिवारी

Tuesday, June 16, 2015
Topic(s) of this poem: love
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