खुशियां अनामत रहे Khushiyaan Anamat Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

खुशियां अनामत रहे Khushiyaan Anamat

खुशियां अनामत रहे

झुका कर नजरे प्यार का
ईझहार कर ले यार का
प्यार कोई जागीर नहीं
और हम कोई आलमगीर नहीं

तू मिली वोही मेरी जन्नत है
मेरे दिल से मांगी ये मन्नत है
सर को रख हमेशा उन्नत दूसरों से
पास आ कर पिला जाम अपने अधरों से।

कोशिश कर कभी गिला ना रहे
मन अपने में ही लगा रहे
हर कोई चाहे घोंसला सलामत रहे
तुम हो मेरी बस खुशियां अनामत रहे।

खुशियां अनामत रहे Khushiyaan Anamat
Sunday, May 15, 2016
Topic(s) of this poem: poem
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कोशिश कर कभी गिला ना रहे मन अपने में ही लगा रहे हर कोई चाहे घोंसला सलामत रहे तुम हो मेरी बस खुशियां अनामत रहे।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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