जूता
कांटा कंकड़ से सुरक्षति पांव
ठंडी गर्मी में, खेती नाव।
ताप की तपन, ठिठुरन की चुभन
त्राहि मिले जूते को पहन।
याद है अभी बचपन की घडी
ना पहने जूता तो डॉन्ट पड़ी।
गर पांव नहीं तो भ्रमण कैसा
निर्लज्ज को है दर्पण जैसा।
जूते की चमक की शान कहो
कीमत में छुपा अभिमान अहो।
प्रेम न होता जब बूते का
निरादर करते हो जूते का।
आपस में करते हो झगड़ा
जूते को करके बीच खड़ा।
छोटा हो या हो नाम बड़ा
जूते का है पर काम बड़ा।
वस्त्र करो कितना भी छोटा
छोटा करके देखो तो जूता।
(C) एस ० डी ० तिवारी
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जूते के सभी पहलु आपने गिना दिए. देखिये तो जूता हमारे जीवन में कितना महत्व रखता है. सुंदर सारयुक्त और रोचक कविता के लिए आपका धन्यवाद, एस.डी.तिवाड़ी जी.