Jhoom Jhoom Aa Gaya Basant Poem by Upendra Singh 'suman'

Jhoom Jhoom Aa Gaya Basant

सुषमा अपार लिए अदभूत अनंत|
फिर झूम-झूम आ गया बसंत|

अंगड़ाती धरती का सोलह सिंगार लिये|
सांवरे की राधा के रूप का प्रसार लिये|
हरित रूप-राशि लिये शोभित दिगंत|

साजन की बाँहों का मंजु मुकुल हार लिये|
दूर क्षितिज आंगन में अम्बर का प्यार लिए|
भाव उदधि संग लिये प्रेम की तरंग|

महुआ की मादकता मधुमय गुहार लिए|
इठलाती कलियों में यौवन का भार लिए|
पात-पात राग लिये गात नवरंग|

मतवाली अलकों में झूमती बहार लिये|
अलसाई अंखियों में प्रेम का ख़ुमार लिये|
अधरों पर हास लिये मन में उमंग|

मधुवन में माधव की राधा पुकार लिये|
नेह प्रीति रीति मधुर अनुपम उपहार लिये|
विरहिन की आस लिये रास के प्रसंग|
मादक मंजरियों में मधुरस का ज्वार लिए|
फागुन की मतवाली मधुमय बयार लिये|
कोयल की कूक लिये पूर्वा के छंद|

रूपसी के केश-पाश रूप की कटार लिये|
धानी चुनर ओढ़े दुल्हन हज़ार लिये|
आस की सुवास लिये मधुर प्रेम-पंथ|

उपेन्द्र सिंह ‘सुमन'

Sunday, July 13, 2014
Topic(s) of this poem: spring
COMMENTS OF THE POEM
Renu Singh 18 December 2015

ऋतुराज बसंत की शोभा, महक, चहक व मदमाते यौवन को रूपायित करती यह मनोहारी व मनभावन रचना कल्पना की अत्यंत ऊँची उड़ान है........बहुत खूब!

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