हम तुम (Hum Tum) Poem by Nirvaan Babbar

हम तुम (Hum Tum)

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जाने अनजानें मैं हम तुम, ये कहाँ पे आ गए,
राहों के, हर साए पे, हम तुम ही तो छा गए,

रेहमत बनके, ख़ुदा की हम, जहां मैं आ गए,
बरखा के, बादल बनके हम तुम, फ़िज़ा पे छा गए,

ख़ुशी के अश्क, बनके हम तुम, पलकों पे आ गए,
दूर से आती, हर इक सदा पे, निशां बना गए,

हाल - ऐ - दिल, अब हवाओं सा है, सो फ़लक़ पे छा गए,
सहारा मिला, जो हमको हमारा, हम ख़ुदा से हो गए,

ज़िन्दगी के, बाग़ - ऐ - ज़हन मैं, हम बनके सकूँ, छा गए,
दिल से निकल के, दिल के ही पहलु, ख़ुद हमको ही हम मैं डुबा गए,

निर्वान बब्बर

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INDIAN COPYRIGHT ACT,1957 ©

Thursday, March 20, 2014
Topic(s) of this poem: love
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