Hindi Haiku Bachcha Poem by S.D. TIWARI

Hindi Haiku Bachcha

8

प्रातःकी बेला

बच्चों की पीठ पर

बस्ते का बोझ

भोर होते ही

गाय रम्भाने लगी

दूध तैयार

प्रातः सुदूर

ऊपर को उठता

आग का गोला

आज सुबह

सूरज नहीं उगा

घने बादल

खिलखिलाते

गुड़हल के फूल

किरणे देख

होते सवेरा

पक्षी भी उड़ चले

छोड़ बसेरा


एक उंगली

सामने की और तो

तीन अपनी


मन को जीता

तूने जग को जीता
hat
जिसकी चाह

सबसे न्यूनतम

बड़ा वही है

मरू के जैसा

विरहन का मन

जल की प्यास
4d0 0
Edit View Post Trash
hindi haiku ghaas 2
खिलौना लेगा

दूसरे के हाथ का

बच्चे की जिद्द

बच्चा रोयेगा

पर घर जाकर

गिर पड़ा था

कोई भी गाड़ी

माँ की गोद के आगे

शिशु को व्यर्थ

दर्द की चीख

शिशु के रुदन में

घुल के लुप्त

बाहर आई

बालक की रूलाई

अति बधाई

हर्ष समाया

नया अतिथि आया

घर में स्वर्ग

न हो अगर ghar men

बालक की चिल पों

आँगन सूना

उड़ा रहा है

उसकी पतंग को

गली का खम्भा

इतना खुश

मानो खजाना पाया

कटी पतंग

लपेट रहा

अब बची डोर को

चरखी पर

उदास बच्चा

ढह गया उसका

मिटटी का किला

शिशु का खिंचा

कागज पर गोला

पृथ्वी का नक्शा
6d0 0
Edit View Post Trash
hindi haiku bachcha
खिलौना लेगा

दूसरे के हाथ का

बच्चे की जिद्द

बच्चा रोयेगा

पर घर जाकर

गिर पड़ा था

कोई भी गाड़ी

माँ की गोद के आगे

शिशु को व्यर्थ


दर्द की चीख

रोने की आवाज में

घुल के लुप्त

तितली आएं

अतः खुले रखते

फूल पंखुड़ी

COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success