Hindi Haiku 14 Oct Poem by S.D. TIWARI

Hindi Haiku 14 Oct

एक कोख के
अब नहीं रहते
एक घर में

बाँट लिए वे
अपने में कमरे
माँ को दलान

ठण्ड का डेरा
पूरी पर्वत माला
बर्फ ने घेरा

जीवित गिरि
किसने डाल दिया
श्वेत चादर

कैसे पचाए
पेट में बात रखे
पेट का खाना

पिल्ला बेचारा
छुपता पुआल में
ठण्ड की मार

गन्ने की खोई
धीरे धीरे जलती
ओस में गीली

ठिठुरी मारे
दीवार के सहारे
धूप में बैठा

जम जाता है
खेत में जमा आलू
पाला के मारे

अस्पष्ट दिखे
कोहरे में धरती
आँखों में माडा

धरा आकाश
कोहरे ने ओढ़ाया
चादर साथ

काली हथिनी
कोहरे में दिखती
गोरे रंग की

जाड़े के दिन
वृद्ध काटें बाहर
धूप सेकते

मैंने क्या खाया
दातों ने बता दिया
फँसी पालक

अँधेरी रात
फिर भी देख लेता
उल्लू मक्खी को

निगल जाता
देख लेने पर भी
मक्खी को उल्लू

बन जाती है
मखमली ओढ़ना
जाड़े की धूप

निकाल दिया
मम्मी ने संदूक से
स्वेटर मेरा

सुबह शाम
अलाव का आनंद
गावं की सर्दी

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