गलीघर की यात्रा
मेरे एक रिश्तेदार
रहते थे यमुनापार।
विदेश घूम आये थे
मिलने के लिए बुलाए थे।
बुलाए हैं इतने प्यार से
सोचा, चलें मिल आएं रिश्तेदार से।
बताने लगे अपनी यात्रा का वृतांत
देर हो गयी, नहीं हो रहा था अंत।
तब मैंने टोका
बीच में ही रोका।
मेरी भी यहाँ तक की यात्रा का
विवरण सुनिए बोला।
उनका घर गली में था
कार ले जाना मुश्किल था।
सोचा बस से ही निकल लें
जरुरत पड़ी तो थोड़ा पैदल चल लें।
बस से उतरा, फुटपाथ पर बढ़ा
आगे नगर निगम का साइन बोर्ड था गड़ा।
एक ही आदमी की जगह थी
उसके बगल से निकलने की।
सामने से महिला आ रही थी
उसे देख पहले तो मैं रुका
फिर स्लो मोशन में देख
बोर्ड के नीचे से निकलने को झुका।
मेरा सिर बोर्ड में ठुका।
दुकानें दस फुट अंदर थीं
दस फुट का निकला शेड
सामान पटरी पर भी रखा था
वे लगा रखे थे सेल।
थोड़ी बहुत जगह जो बची थी
ग्राहक लोग खड़े थे
पटरी पर गाड़ियां खड़ी थीं
और कुछ किनारे सड़क के।
दाएं बाएं होते आगे चला
कई बार सड़क के बीच तक बढ़ा।
बगल से जो गाड़ी निकल रही थी
लगभग मुझे रगड़ रही थी।
बचने के लिए बगल हुआ
किसी गरम चीज ने छुआ।
किस्मत थी कि बच गया
वह था टिक्की वाले का तवा।
पेट्रोल की गाड़ियों के बीच
टिक्की की रेडी लगा रखी थी
तवा गरम करने के लिए स्टोव जला रखी थी।
वही स्टोव अपने प्रांगण में जलाते
तो फायर वाले आ जाते
अग्नि शमन यन्त्र कहाँ है
पूछते, दो चार कह जाते।
कुछ दो या चालान कटवा लो
और अगली बार आने से पहले
अग्निशमन यन्त्र लगवा लो।
तभी दिखा तक़दीर बताने वाला तोता
अपना भी भविष्य पूछ लूँ सोचा
अब तक दो बार तो बच चुका
क्या पता आगे क्या होगा।
दस रुपये दिए, तोता ने कार्ड निकाला
यात्रा का सुखद योग, था लिखा।
पटरी पर ही चल रहा था ढाबा
थोड़ा ही आगे चटाई पर बैठे
वह बोल रहा था, दे दे बाबा।
पटरी कहीं खाली नहीं दिख रही थी
कहीं पेन, कंघी, कहीं चाट बिक रही थी।
पटरी पर ही बिक रहा था
फलों का जूस भी
एक ओर एक गाड़ी रोके
ट्रैफिक वाला ले रहा था घूस भी।
आगे, फल वाला, फूल वाला
पानी वाला, विरयानी वाला
ठेला वाला, केला वाला
छल्ली वाला, झल्ली वाला
अख़बार वाला, सब्जी वाला
चाभी वाला, चाय काफी वाला
भुट्टे वाली का फायर
पंचर वाले का टायर
बदलने वाला फटे नोट
निकालने वाला कान का खोट
इटालियन सैलून, शरबते बहार
घर का बना मुरब्बा अचार
कंट्री शू मेकर, बनारसी पान
खम्भे पर टंगे करीना सलमान
मर्दानगी वापस लाने की दुकान
सांडे का तेल, मदारी का खेल
क्या नहीं था फुटपाथ पर
पैर रखने का स्थान नहीं था पर
बचते बचाते चल रहा था
मानो कि कत्थक कर रहा था।
फुटपाथ की यात्रा समाप्त हुई
अब मुड़ना था उस गली में
जिसमे रिश्तेदार का घर था
नुक्कड़ पर खड़ा ट्रक था।
ट्रक में भरी थी रेत रोड़ी
नीचे तक छिटकी पड़ी।
बिल्डिंग मटेरियल की चलती फिरती दुकान थी
गली में मुड़ने की यही निशान थी।
गली में फुटपाथ की जगह नालियां थीं
दरवाजों के चौकठ पर पुलिया थीं
कुछ सीढ़ीनुमा, कुछ ढलवा थीं।
नाली की हाल ही में सफाई हुई थी
कचरा किनारे पड़ी हुई थी।
मलवा अभी उठा भी न था
ठीक से सुखा भी न था।
पैर जा पड़ा उसी में
गली वाले डूबे हंसी में
समीप लगे हैंडपंप पर धोया
अपना पैंट भिगोया।
आगे बढ़ा, पैरों पर बौछार आई
मैंने बगल में नजर घुमाई ।
सोचा शायद बच्चों ने मारी
पानी भरी पिचकारी।
देखा तो कल्लू हलवाई की
दुकान का फर्श धोकर
एक हाथ में पाइप पकड़े
पानी निकाल रहा था नौकर।
तभी एक बाल आई, पैरों से टकराई
पीछे से आवाज आई
अंकल फेंकना, मैंने नजर घुमाई।
देखा तो चली गयी थी नाली में
आगे बढ़ा, बोलकर सारी मैं।
तभी पंख फड़फड़ाने की आवाज आई
पक्षी जान मैंने दृष्टि दौड़ाई
देखा तो बिजली के तार में अटकी
जोरों से हिल रही थी पतंग कटी।
बोल रही थी, गली के बच्चों आओ
मुझे यहाँ से ले जाओ
ना ले गए तो, खम्भे पर पटक
सिर फोड़ लूंगी
यहीं पर दम तोड़ दूंगी।
तभी ऊपर कुछ बूंदें पड़ीं
न कहीं बादल न बरसात की झड़ी।
देखा, बालकनी से एक महिला निहार रही थी
अपनी साड़ी कचार कर पसार रही थी।
साडी को जोर से झटक दिया
कुछ बूंदें मुझ पर भी पटक दिया।
चला जा रहा था
एक जगह थोड़ी खाली पड़ी थी
वहां कचरा पड़ा था
उसमें एक गाय खड़ी थी।
कुत्ता भी मुंह मार रहा था
कचरे को इधर उधर टार रहा था।
मैंने नाक दबाया
अपनी गति को थोड़ा बढ़ाया।
पास ही दिवार की ओर मुंह किये
एक सज्जन जो थे खड़े
इससे पहले वे आगे बढे
दिवार पर लिखी इबादत पढ़े
देखो गधा पिशाब कर रहा है
दिवार को ख़राब कर रहा है।
जैसे तैसे उनके घर के समीप पहुंचा
तभी पैर में लगी ठोकर
भाई साहब ने बनवा रखा था
घर के पास निजी स्पीड ब्रेकर।
उन्होंने बालकनी से मुझे देखा
ऊपर आने का सिग्नल फेंका
सीढियाँ कुछ संकरी थीं
दीवारों पर जाल और मकड़ी थीं।
बचते बचाते मैं ऊपर पहुंचा
उन्होंने हाथ पकड़ा और अंदर खींचा।
समाप्त होने तक चाय पानी
कह डाली मैंने पूरी कहानी।
यात्रा का सुने जब पूरा प्रसंग
रिश्तेदार जी भी रह गए दंग।
वाह! इतनी छोटी यात्रा में
इतने सारे रंग!
वाह भाई वाह ईस्ट हो या वेस्ट
इंडिया इज बेस्ट।
(C) एस० डी० तिवारी
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem