घनों से बरसता नीर (GHANO SE BARASTA NEER) Poem by Nirvaan Babbar

घनों से बरसता नीर (GHANO SE BARASTA NEER)

घनों से बरसता नीर हमें अधीर भी करता है,
किसी की यादों मैं हमें वो, रह-रह कर विलीन भी करता है,

अब कुछ भी नहीं हमारे खाते मैं, वो सब कुछ रिक्त भी करता है,
जीवन के हर पल को, वो किसी के आधीन भी करता है,

सार को अंत, अंत को वो सार भी करता है,
बरस कर, हर पल हमको वो, किसी मैं तन्लीन भी करता है,

पवन सा शोर करता वो, बड़ा उध्घोष भी करता है,
बरसता है गरजता है, हमें वो खामोश भी करता है,

निर्वान बब्बर

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