Geeton Ke Vikrit Roop गीतों के विकृत रूप Poem by S.D. TIWARI

Geeton Ke Vikrit Roop गीतों के विकृत रूप

परोस रहे गीतों को, विकृत बुद्धि के लोग
गीत की छवि बिगाड़ कर, धारे धन का लोभ
धारे धन का लोभ, अपनी हैं धरोहर जो
उन्हें तोड़ मरोड़ रहे, संस्कृति में अमर जो
कई गीत संगीत हैं, मूल रूप में अनमोल
नष्ट करो ना भाई, कर विकृत रूप परोस

Tuesday, June 2, 2015
Topic(s) of this poem: literature
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success