गांव में जिये Ganv Me Jiye (Hindi) Poem by S.D. TIWARI

गांव में जिये Ganv Me Jiye (Hindi)

गांव में जिये

अभाव में जिये, मगर भाव में जिये,
जितना मिला, उसी में ताव में जिये।
मदमस्त हवा, सूरज, चाँद, सितारे,
खूब मिले, दिल खोल के मिले सारे,
खिली धूप, बादलों की छाँव में जिये।
बाग़ बगीचा, खेत और खलिहान,
खगों के कलरव में गूंजता विहान,
कोयल की कू, काग की कांव में जिए।
हरी धरती, हँसते फूल गमकीन,
उड़ती तितलियों के पंख रंगीन,
बसंत के पसरे हुए पांव में जिए।
बूंदों की रुनझुन, नदी की कलकल,
खिसकती खटिया, रही टपकती छत,
बारिश के पानी के जमाव में जिये।
गर्मी, झलते बेना, पोंछते स्वेद,
सर्दियों में मखमली धूप की सेंक,
निष्कपट, निर्मल स्वभाव में जिये।
तोड़े हाथों से अमरुद आम फले,
पगडंडियों पर कोसों पैदल चले,
प्रकृति की सुहानी ठाँव में जिए।
संबंधों की मिठास का करते जतन,
अपनों के वास्ते लुटा दिए तन मन,
रूठे कभी तो मान मनाव में जिये।
सादगी व सरल आव भाव में जिये
बहुत स्वछन्द अपने गाँव में जिये।
अभाव में जिये, मगर भाव में जिये,

एस० डी० तिवारी

Friday, October 16, 2015
Topic(s) of this poem: hindi,nature,rural
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