दिल, नाते और पत्थर की दुनिया (DIL, NAATE AUR PATTHAR KI DUNIYA) Poem by Nirvaan Babbar

दिल, नाते और पत्थर की दुनिया (DIL, NAATE AUR PATTHAR KI DUNIYA)

जो सच है, उस सच को छुपाएँ कैसे,
सहा ज़ुल्म तो, ज़ुल्मत के निशाँ छुपाएँ कैसे,

वक़्त के साहिल पे बैठे, चाल वक़्त की देखा किए,
वक़्त आगे निकल भागा, हम देखते ही रह गए, बस यूँ ही बैठे - बैठे,

दिल के भले लोग, कम ही मिले हमें इस जहान मैं,
दिल के कालों की, इस दोज़क जाहाँ मैं कमी नहीं,

खोटे - ही - खोटे सब दिल के यहाँ,
कोंन बचा इनसे, कोंन इनसे यहाँ बच पाएगा,

कांटें - ही कांटें लिए, हर कोई फिर रहा,
कब तक खिज़ा से, कोई बच पाएगा,

बनते - बिगड़ते नातों का समंदर है जाहाँ,
रिश्तों की दरारें कब भरेगीं, और कोंन इसे भर पाएगा,

निर्वान बब्बर

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