दिल को हरदम dil ko hardam Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

दिल को हरदम dil ko hardam

दिल को हरदम सताता है

बस एक बार लत लग जाए
फिर कदी होश ना आवे
प्यार की संगत ऐसी
नींद उडा दे वैसी।

प्यार मांगे ज्यादा
और ऊपर से वो हो जाय आमादा
फिर क्या हो विसात किसी की?
जो मना कर दे पियासी की i

में भी हो गयी मोहमग्न
प्यार से भरी मनाने जश्न
जो किसी को भी घायल कर दे
कभी ना कह सके और हामी भर दे।

में मरजावा तेरे ख्याल में
यदि ना देखता लाल रुमाल
तू गुलाब सी महक रही थी
मेरे प्यार में जैसे बहक रही थी

प्यार से बड़ा कोई तोहफा नहीं
जो ठुकरादे वो बेवफा से कम नहीं
में सदा प्यार में डूबा रहूँ
बस समय की चल में दबा रहूँ।

मेरे दिल में इश्क का अंगार
बस बनके उमड़ रहा है बेसुमार
आजाओ तुम मेरे आगोश में
कब तक रहूँ खामोश में

ना मुझे समय का है ख्याल
नाही बस कोई सतावे सवाल
बस तुही तो दिख जाता है
दिल को हरदम सताता है

Friday, August 1, 2014
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 14 August 2014

Hasmukh Mehta welcomerahul, ravi, samjay, harish n neelam Just now · Unlike · 1

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Mehta Hasmukh Amathalal 14 August 2014

Hasmukh Mehta welcome Poet A Collinc, Khushwinder Raaj Kaur, Maithili Roy Just now · Unlike · 1

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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