हमने अपने पीने का अंदाज बदल डाला है
हमने अपने जीने का अंदाज बदल डाला है
अब तो जो भी मिलता है यहीं बात कहता है
हमने उसके सीने में सूरज का उजाला भर डाला है
अब कोई प्यासा नहीं जाता है जो मेरे पास आता है
हमने मोहब्बत का दरियाँ हीं उसके नाम कर डाला है
हमको ये पता नहीं कौन क्या ख़्वाहिश लेते जीता है
हमने सारा आसमान ही उसके दामन में भर डाला है
कौन रंग का कौन आंशिक है किसको पता है
इसलिये सातों रंग ही उसके बदन पर मल डाला है
या खुदा तु कब आ जाएगा माँगने हर पल का हिसाब
हमने पहले हीं पाप पुण्य को दरियाँ में बहा डाला है
जो विष फैलाते घुम रहे थे बेख़ौफ़ हर तरफ़
हमने उनके फन को हीं कुछ येसे कुचल डाला है
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beautiful and fine, thanks my dear poet.