चलो बदल जाएँ हम भी, हमारा भी क्या है (CHALO BADAL JAAYE HUM BHI HUMARA BHI KYA HAI) Poem by Nirvaan Babbar

चलो बदल जाएँ हम भी, हमारा भी क्या है (CHALO BADAL JAAYE HUM BHI HUMARA BHI KYA HAI)

चलो बदल जाएँ हम भी, हमारा भी क्या है,
बदलता है सब कुछ, समय का है फेरा,

ओरी सखि री....., बुरा.......ना मानो,
जो हो रहा है, अर्थ उसका जानो,

कोई ना तेरा, ना कोई मेरा यहाँ है,
होना यहाँ है इक दिन सवेरा,

किसको दिखाएँ हम, मन का अँधेरा,
फिजा मैं ज़हर है, नहीं अमृत का फेरा,

अपनों मैं भी हम गैर हो गए हैं,
रिश्ते हैं रिश्ते, रिश्तों का क्या है,

बदलना तो इनकी फ़ितरत रहा है,
चलो बदल जाएँ हम भी, हमारा भी क्या है,

निर्वान बब्बर

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