Bigade Geet बिगाड़े गीत Poem by S.D. TIWARI

Bigade Geet बिगाड़े गीत

परोस रहे गीतों को, विकृत मति के लोग
गीत की छवि बिगाड़ कर, धारे धन का लोभ
धारे धन का लोभ, अपनी हैं धरोहर जो
उन्हें तोड़ मरोड़ कर, संस्कृति में अमर जो
कई गीत संगीत हैं, मूल रूप में अनमोल
मित्रों करो ना नष्ट, कर विकृत रूप परोस

(C) S. D. Tiwari

Friday, June 12, 2015
Topic(s) of this poem: society
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