भटक गए है किस के लिए bhatak gaye hai Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

भटक गए है किस के लिए bhatak gaye hai

भटक गए है किस के लिए

तुम करते रहो अपने करम
और कहे रहो उसे धरम
चढ़ जाए बलि गुलशन के गुल
हम कैसे करे ऐसी भुल?

हमें कोई ऐसा फलसफा तो बताओ?
जिस में कोई पराया ना हो
प्रेम से बढ़कर कोई ऊंचा ना हो
फिर कोई जीसस, राम या कहे अल्लाहो।,

कितने बेगुनाह और परवान होंगे?
मेरी धरती के लाल कुर्बान होंगे
कब बोलेगी माँ 'अब तो बस कर लो'
अपनों शमशीर को म्यान में रख लो।

मेरे खून को इतना सस्ता ना बनाओ
इंसानियत को शर्मसार ना दिखाओ
कर्म तुम्हारे पीछा नहीं छोड़ेंगे
गुरुर को वो ऐसे हो तोड़ेंगे।

मेरे दूध को लज्जित ना करो
बस अमन और चैन कायम करो
ना वो भागे जा रहे है और ना ठुकरा रहे है
बस करते रहो करम, वो दुआ दिए जा रहे है।

दुनिया दहशत से कभी नहीं मरेगी
वो तो अपनी मिसाल कायम करेगी
यहाँ अमन चेन को ही स्थान है
पापी और जल्लादों का जल्द ही हनन है।

मेरे वतन के युवान क्यों गुमराह हो रहे है?
धर्म के नाम पर बेगुनाह को क्यों मार रहे है?
यदि अल्लाताला को ही पाना है फिर खून की होली क्यों?
बाकियों का खून पानी और अपना खून असली खून ऐसा क्यों?

कभी माफ़ नहीं होगा वतने जुर्म
आप चाहे कहलो उसे अपना धर्म
वो भी देख रहा है ऊपर से आंसू लिए
आप सब भटक गए है किस के लिए?

Sunday, December 21, 2014
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 21 December 2014

तुम करते रहो अपने करम और कहे रहो उसे धरम

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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