Baat Itti (Hindi) बात इत्ती Poem by S.D. TIWARI

Baat Itti (Hindi) बात इत्ती

बात इत्ती

कैसे कह दूँ कि हमारे वे हबीब न थे।
बात इत्ती कि पाने के तरकीब न थे।

मिलाते क्योंकर, वो ताल से ताल?
हम उनके अगर, बहुत करीब न थे।

अपने रस्ते, भटकाते खुद ही क्यों?
बहकाने वाले, अगर रकीब न थे।

ख्वाईशें तो उनकी, कर देते ही पूरी;
किसी तौर से, हम भी गरीब न थे।

अल्ला को तोहमत दे झाड़ लें पल्ला
क्योंकर हम, इतने खोटे नसीब न थे।

उनकी यादों में, गुजारें जिंदगी सारी,
जियें अकेले, इतने भी शरीफ न थे।

एस० डी० तिवारी

Saturday, May 7, 2016
Topic(s) of this poem: hindi
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