Amrit Phir Barsa De (Hindi Poem) Poem by Rakesh Sinha

Amrit Phir Barsa De (Hindi Poem)

निस्तेज सी धरा है, ग़मग़ीन है हवाएं,
गंगा भी है मलिन सी, उदास हैं शिखाएं |
अधर्मियों की ताकत बढ़ती ही जा रही है,
इंसानियत है घायल, हैवानियत गुनगुना रही है,
हर ओर बेकली है, हर ओर बेबसी है |
धर्मस्थापना की फिर से रणभेरियां बजा दे,
सोई हुयी धरा को तांडव से तू हिला दे,
पान्चजन्य का शंखनाद कानों में फिर गुंजा दे,
देशप्रेम फिर से दिलों में तू जगा दे,
अश्रु भरे दृगों में चिनगारियां सजा दे |
कुचली हुई शाखाओं में हरित क्रांति भर दे,
शिथिल पड़ी भुजाओं में नवरक्त संचार कर दे,
उजड़ी बस्तियों को फिर से तू बसा दे,
पापियों को उनके कुकृत्यों की सजा दे |
भारत की इस पावन धरती पर
आशाओं के नवदीप जला दे,
भारत की इस पावन भूमि पर
अमृत फिर बरसा दे, अमृत फिर बरसा दे |

Thursday, February 11, 2016
Topic(s) of this poem: patriotism
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