Ai Kavita Meri (Hindi) ऐ कविता मेरी Poem by S.D. TIWARI

Ai Kavita Meri (Hindi) ऐ कविता मेरी

Rating: 5.0

ऐ कविता मेरी

बता तनिक ऐ कविता मेरी
कहाँ से तुम चली आई हो।
मन में मेरे हलचल मचाकर
चिंतन मेरी बढ़ायी हो।

सोई थी तुम ह्रदय में मेरे
निकल, पन्नों पर छाई हो।
चिंतन का मंथन कराके
ज्यों छेड़ी, कोई लड़ाई हो।

मेरे मन की खिड़की खोल
अन्तः प्रकाश ले आई हो।
दृष्टि को दूरबीन थमाकर
नीलाम्बर तक दौड़ाई हो।

ह्रदय में मेरे घुल मिल कर
परम आनंद ले आई हो।
कभी विकल कर, क्लष्ट बढ़ा
मन की व्यथा जगाई हो।

कभी चुलबुलेपन से अपनी
सबके मन को लुभाई हो।
कभी चुटकुलेपन से तुम
सबको बहुत हंसाई हो।

कभी मनोरंजन बन जाती
सखी, कभी तन्हाई हो।
कभी तुम तो नींद चुराती
कभी बानी अंगड़ाई हो।

कभी झरना सी बहने लगती
कंकड़ से रुक जाती हो।
कभी मोती सा बिखर जाती
तो शब्दों में गूँथ जाती हो।

प्रेम योग और वियोग की
तुम तो कथा सुनती हो।
विरहन की जिह्वा पर बैठ
विरह गीत भी गाती हो।

कभी कभी करुणा में डूबी
रोकर अश्रु बहाई हो।
कभी दिलों के मधु मिलन पर
बजती हुई शहनाई हो।

पतितों के पापों को देख
रौद्र बहुत हो जाती हो।
क्रोध में धरके रूप भयानक
सबको फटकार लगाई हो।

युद्ध, तूफान, प्रलय में भी तुम
तनिक डरी न घबराई हो।
वीभत्सता देखि खुली आँखों से
श्रृंगार पर इतराई हो।

कविता! तुम तो दर्पण बनकर
हमें प्रतिबिम्ब दिखाई हो।
कभी दशा देख समाज की
स्वयं अपने ही लजाई हो।

देव वाणी भी बन जाती तुम
राम और कभी कन्हाई हो।
बता तनिक ऐ कविता मेरी
कहाँ से तुम चली आई हो।

एस० डी० तिवारी

Wednesday, February 3, 2016
Topic(s) of this poem: emotions,hindi,poetry
COMMENTS OF THE POEM
Abhilasha Bhatt 03 February 2016

A lovely and beautiful write.....thank you for sharing :)

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