Ab Main Ek Kalamkaar Huun(Hindi) Poem by Aftab Alam

Ab Main Ek Kalamkaar Huun(Hindi)

Rating: 5.0


अब मैं एक कलमकार हूँ//दरवेश

मैं एक मुर्तिकार हूँ
मैं एक बुततराश हूँ
मैं एक कुम्हार हूँ......
बनाता हूँ मुर्तियाँ
जो मेले में बिकते हैं

बेच कर फिर मैं
मेले की याद में
कुम्भकरण की भाँति
सो जाता हूँ
एक गहरे नींद में
‘मुझे मुर्तियाँ दिखते हैं’

हाय!
ये मेरे हाथो की कारीगरी
ये मुर्तियाँ,
उस घर में
सजे धजे
देवी- देवता भगवान दिखते हैँ

मैं इनसे फरियाद करता हूँ
इनसे आशा करता हूँ
इन्हें पूजता हूँ
ये केवल अपनी सुनते हैं
हमारी नहीं सुनते
ये तो हमें भूल
अपने ही सपने बुनते हैं

उस मंदिर में,
मेरे पुतले
मेरी कृति
‘मेरे जुबान पर घाँस उग गये’
‘आँतो से जुबान बंध गई’
मेले के बाद
फिर वो नहीं दिखते हैं /

मेरे बनाए
मेरे हाथों की करीगरी
मुझे इँतजार है
उस दिन का
जब कहेगा तू
मेले के बाद
ऐ मेरे जजमान
‘आप के सेवा में हाजिर हूँ श्रीमान’

इतना सुनने के लिये
अब मैं
एक मुर्तिकार
एक बुततराश
एक कुम्हार नहीं
ना ही इनकी भक्ती करता हूँ

अब मैं एक कलमकार हूँ
कगज पर अक्षरों को उकेरने की करीगरी
एक चित्रकार की तरह
शब्दों से सुंदर तस्वीर बनाता हूँ
घर को सजाने के लिये
मुर्तियों को हटाने के लिये
जो अब बदसूरत दिखते हैं ।
वो छलने वाले मुर्ति
मुझे जो बदसूरत दिखते हैं ।

COMMENTS OF THE POEM
Neela Nath Das 16 October 2013

Beautiful verse! Thanks for enriching us.

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