आप ही बताये, , AAP HI BATAYE Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

आप ही बताये, , AAP HI BATAYE

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आप ही बताये

मैंने मांगी दुआ
उस ने मुझे छुआ
मुझ में चेतना का हुआ संचार
बदल गए पुरे विचार

वो एक ही तो थी
जो मेरी कुछ लगती थी
सीने से लगाती थी
और अपना दुःख भूल जाती थी

पूरा दुःख का समंदर था सामने
कोई न था जिसे वो कह सकती थी अपने
बुरे दिन थे, खाने को दाना नहीं था
जलाने को लकड़ी तो छोडो, चुल्हा भी नहीं था

क्या क्या नहीं किया उसने मुझे बड़ा करने?
पत्थर तोड़े, ताने सहे और कड़ी मेहनत की उसने
थोडा पगभर हो चला तो आंसू लगे बहने
खूब सजाये थे उसने सुनहरे सपने

मेरा संसार सजाने आज वो जा रही है
उसे अपनी चिंता सता नहीं रही है
'मेरा खुद जिम्मा हो वैसा संसार वह चाहती है'
येही चिंता मुझे कोरे जा रही और सताती है

'यदि उसका मान सन्मान नहीं रह पाया'
'उसे यदि लगने लगे की उसने सब कुछ खोया'
मेरा जीवन मुझे बोझिल सा लग रहा है
मांकी ममता का खून मेरी रग में बह रहा है

आज सब कुछ है भगवान् का दिया
उसने मुखे कुछ भी कमी नहीं आने दिया
अब मुझे ही कुछ करना होगा उसकी हिफाजत के लिए
क्षणभर सोचता हूँ की कैसे कहू, सब कुछ उसकी इजाजत के लिए

संसार चले जैसा वो चाहती है
वो आज भी खूब मेहनती है
में अपना जीवन समर्पित करू वो भो कम होगा
आप ही बताये' आज मुझे क्या क्या करना होगा'

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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