आज रात है बहुत ही भरी (AAJ RAAT HAI BAHUT HI BHAARI) Poem by Nirvaan Babbar

आज रात है बहुत ही भरी (AAJ RAAT HAI BAHUT HI BHAARI)

आज रात है, बहुत ही भरी, हम कैसे, सॊ पायेंगे,
सुबह - सवेरे, उठने की, चाहत मैं, हम सो ना पायेंगे,

बीच बड़ी दीवार खड़ी है, कब ना जाने ढह पाएगी,
ये ज़मीं से, उस अम्बर तक, चाहत कहाँ ले जायेगी,

टूटे पत्ते, जो पेड़ों से, पैरों से शोर मचाएंगे,
राज़ की बातें, करने वाले, खुद ही चुप हो जाएंगे,

पत्थर की दीवारें भी, फूलों सी हो जाएँगी,
हमसे छुप कर, कुछ बातें करलो, ये लम्हे कहाँ से लाएंगे,

निर्वान बब्बर

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