A Poem For Unity (Hindi+urdu) Poem by Gaurav Pandey

A Poem For Unity (Hindi+urdu)

हमारी रगों में बसता है हिन्दोस्तान, इसे अब और ना बांटो,,
कितना और करोगे हिन्दू- मुसलमान, अरे कोई तो नफरत के इस धागे को काटो..
मुसाफिर हैरान है अपने मुल्क के रहनुमाओं से, जो फर्क करते हैं दो भाइयों में भी,
अरे, अगर बाँटना ही है तो हिंदी का प्यार,, उर्दू की मिठास को बांटो..

Sunday, April 20, 2014
Topic(s) of this poem: freedom
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