कोरोना, कोरोना Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

कोरोना, कोरोना

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कोरोना, कोरोना
मंगलवार, १२ मई २०२०


कोरोना, कोरोना
ऐसा ना करोना
हम है धरती के वासी
सदा रहे प्रेम के प्यासी। कोरोना, कोरोना

ये कैसी है नफरत
तू फैला रही है कुदरत
हम तो है तेरे अबोध बालक
तू कैसे भूल गयी बन के पालक। कोरोना, कोरोना

तेरी नाराजगी
और ऊपर से ये खफ़गी
जिंदगी से तेरा मुंह मोड़ना
और ज्यादती करके प्रताड़ना। कोरोना, कोरोना

हम तो मर जाएंगे
पर तुझे माफ़ ना करेंगे
तेरी ये खुराफात
हमारे पर लाइ है आफत। कोरोना, कोरोना

तूने मचाई है तबाही
हमें ने भी ना सुनी कोई आगाही
बस जीवन में कर दी एक गोताही
रह गयी अब तो सिर्फ बर्बादी। कोरोना, कोरोना

धरती ने अब तो खो दी है धीरज
हम भी तो कररहे है अरज
अब तो सुन ले और वापस चला जा
हमारी इतनी विनती सुनता जा।कोरोना, कोरोना

ये आसमाँ ना तेरा है
फिर क्यों जमीं पे डेरा है?
निकल जा सम्हलके समय अभी भी है
इस में सब की भलाई भी है।कोरोना, कोरोना

हसमुख मेहता

कोरोना, कोरोना
Tuesday, May 12, 2020
Topic(s) of this poem: poem
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ये आसमाँ ना तेरा है फिर क्यों जमीं पे डेरा है? निकल जा सम्हलके समय अभी भी है इस में सब की भलाई भी है। कोरोना, कोरोना हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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