ये बम बारूद खंजर से डराना छोड़ दो मुझको Poem by NADIR HASNAIN

ये बम बारूद खंजर से डराना छोड़ दो मुझको

फ़िज़ा ज़हरीली है लेकिन अभी इंसान बाक़ी है
सदाक़त भाईचारे पे जो हो क़ुर्बान बाक़ी है

मिलेगा दीन व दुन्याँ की हर एक पेचीदगी का हल
समझ कर तुम अमल करलो फ़क़त क़ुरआन काफी है

ये बम बारूद खंजर से डराना छोड़ दो मुझको
हिफाज़त के लिए मेरी मेरा ईमान काफी है

मैं हूँ उम्मत मुहम्मद की फ़क़त डरता ख़ुदा से हूँ
ज़रा तारीख़ पढ़ लेना मेरी पहचान काफी है


ग़रीबों बेसहारों पे क़लंदर बेगुनाहों पे
सितम से बाज़ आ ज़ालिम अभी अंजाम बाक़ी है

हुई थी इक इशारे पर ग़र्क़ फ़िरऔन की ताक़त
समंदर की लहर में वह अभी भी जान बाक़ी है

तेरा अल्लाह हाफ़िज़ है अरे नादिर ना घबराना
ख़ुदा गर जोश में आया तो इक फरमान काफी है

: नादिर हसनैन

ये बम बारूद खंजर से डराना छोड़ दो मुझको
Tuesday, March 29, 2016
Topic(s) of this poem: strength
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success