इस बार होली जमकर खेलेंगें... Poem by Sandhya Jane

इस बार होली जमकर खेलेंगें...

Rating: 5.0

साल भर घंटो पानी बहाकर कार के साथ सड़क न धोयेंगे
हर घर में हर एक को जरुर समझायेंगें की -
बहते नल के निचे बर्तन और कपड़ा न कभी धोयेंगे;
और होली के समय 'सेव वाटर' का झुट नारा न लगायेंगे,
और इस बार होली जमकर खेलेंगें...

दोस्तों, ये 'ड्राई-व्राई' होली वाली सोच बकवास है,
क्योंकि होली रंग और पानी का त्यौहार है;
इस बार पिचकारयाॅ छुट्टी नहिं मनाएँगे,
क्योंकि लाखों लीटर पानी हम साल भर बचाएगें,
और इस बार होली जमकर खेलेंगें.…

ओ, भैया, कभी ये विज्ञापन भी दिया करो -
इस बार ईद पे छुरीयाँ छुट्टी मनाएगें
या कि्समस में पेड़ नहि काटायेंगे;
क्योंकि समान 'आचार विचार' कि सोंच में सबको गर्व महसूस करायेंगे,
और इस बार होली जमकर खेलेंगें.…

Thursday, May 28, 2015
Topic(s) of this poem: holi
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Against misleading environmental campaign to kill Indian culture and festivals...
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 12 March 2020

जन-जागरण की भावना से प्रेरित कविता. धरती और मानव के बीच संतुलन बनाये रखने की बहुत जरुरत है. बहुत अच्छा लिखा गया है. धन्यवाद.

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