मेरा मौन Poem by Shobha Khare

मेरा मौन

लो तुम मुझ को वहाँ पुकार
जहां तुम्हारा पवन प्यार
ओछे दिन की ओछी क्लांति
हर लेती जीवन की शांति
उठते मन मे सहज विकार
जहां तुम्हारा मौन अनंत
निविड़ निशाका कही नअंत
उस तम से लो मुझे उबार
शांति रात्रि मे मेरा मौन
खो जायेगा पाएगा कौन
लेगा अंतरतम आकार II

Tuesday, May 5, 2015
Topic(s) of this poem: life
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