अंधेरा Poem by Shobha Khare

अंधेरा

घेर लिया जन जन ने फिर से
मेरे मन को घेर लिया है
फिर से मम आंखो के आगे
गहन अंधेरा फेक दिया है


फिर बातों का जंजाल शुरु
फिर लगा चित्त चंचल होने
फिर धू धू जलने लगी अग्नि
फिर लगी नई हलचल होने

फिर डगमग होने लगे चरण
व्याकुलता शांति न पाती है
जग के निर्मम कोलाहल मे
नीरवता डूबी जाती है II

Friday, April 24, 2015
Topic(s) of this poem: life
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