अभिलाषा Poem by Shobha Khare

अभिलाषा

नहीं दिखाते है क्या तुझ को
अपनी रचना मेरे नैन
अभिलाषा है इन नैनो से
देखू तुझे, सुनू तब बैन
बैठा रहता मौन सदा तू
धारे मुख पर, मृदु मुस्कान
मेरे मुग्ध स्रवण से ही तू
सुनता है निज मधुमय गान
मैतुझपर बलि बलि जाती हू
पाती हू तेरी जब तेरी प्रीत
पाकर प्रीत जाग जाते है
अभ्यंतर के सारे गीत II

Thursday, April 23, 2015
Topic(s) of this poem: life
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