शुभचिंतन Poem by Shobha Khare

शुभचिंतन

वो तो हरदम साथ है, दिन हो चाहे रात
क्या करता है क्या नहीं, कानो मे कह जात
एक द्वार जब बंद हो करना नहीं मलाल
ऊपर बाला खोलता कई द्वार तत्काल
नहीं दोबारा लौटते बचपन के वो साल
क्यो वापिस आते नहीं, गंजे के सिर बाल
ढग सोचने का बदल, यदि है सुख की चाह
शुभचिंतन के असर से दु: ख भरता है आह II

Thursday, April 23, 2015
Topic(s) of this poem: life
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