चश्मे में खोट Poem by vijay gupta

चश्मे में खोट

"चश्मे में खोट"

मेरे चश्मे में ही कोई खोट है,
मुझे खोट ही खोट दिखाई देता है दुनियाँ में,

माना कि दुनियाँ खूबसूरत है, हसीन है,
फूलों की वादी शानदार है,

गुनगुनी हवाऐं, चिड़ियों का कोलाहल बेमिसाल है,
दुनियाँ बेशक लाजवाब है।

यहां ऊँची-ऊँची पहाड़ की चोटियाँ,
व नीचे गहरी-गहरी खाईयाँ हैं।

बेजुबानों को घायल करते लोग,
उन्हें बचाते गौतम बुद्ध सरीखे लोग भी यहाँ है।

मेरा चश्मा सब कुछ देखता है,
मेरी कलम उन्हें पटल पर उतारती है।

मैंने औलों से पटी सड़क,
बर्बाद होती आलू व सरसों की फसल देखी है।

बड़ा दुख होता है,
गरीब किसान की बेबसी पर।

झोपड़ी में टपकती बारिश की बूंदे,
बाशिंदों के अरमानों पर कहर बरपाती हैं।


मेरा चश्मा उसको भी देखता है,
फलक पर उतारने का मन करता है,


तब मेरी कलम रुकती नहीं,
उसे कागज पर उकेरती है।

Tuesday, February 12, 2019
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