ये कैसी अनजान जादू Poem by Abhinav Ashish

ये कैसी अनजान जादू

नीला जग ये सारा,
भोर नभ खिले, जग ये प्यारा।
सूर्य के किरणे निकले चुपचाप,
ये मेरी कवितेा है बडी अनजान।

पत्तो में ओस की बूंदे,
लाती हैं धरती की उमंगें,
लाल, पीले, हरे, नीले
आती हैं सूर्य की किरणे।

हे सूर्य देव, शीघरू आऐ शीघ्र आऐ
सूर्य की ताप लाऐ
ये मेरी धरती माँ की हरी-भरी शान
है इसकी सहजता प्राण

सूर्य के किरणे निकले चुपचाप,
ये मेरी कविता है बडी अनजान

Sunday, January 4, 2015
Topic(s) of this poem: sun
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