न जाने क्यों मेरे दिल को तुम्हारा नाम भाता है. Poem by Abhishek Omprakash Mishra

न जाने क्यों मेरे दिल को तुम्हारा नाम भाता है.

न जाने क्यों मेरे दिल को तुम्हारा नाम भाता है.
तू रुसबा करे इसे फिर भी तुम्हे अपना बताता है.
ये रहमत तो मेरे महबूब, उस मौला ने बख्सी है.
मैं जितना दूर जाता हूँ, वो उतना पास आता हैं.

Friday, December 19, 2014
Topic(s) of this poem: love and pain
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