मेरी लाखो करोडों में हसीन आरजु Poem by Dr. Ravipal Bharshankar

मेरी लाखो करोडों में हसीन आरजु

मेरी लाखों करोडों में
हसीन है आरजू, अनमोल आबरू

नीला नीला आसमां हसीन मंजर
सतरंगी खयालो का खंजर
उतर तो आए दिल में ना कोई गुहार रहें
जान भी जाए अगर, ना कोई मलाल रहें

दर्पण में ना नज़र आए
शीशे से जो गुज़र जाए
यही तो चाहे जिगर, ना कोई बवाल रहें
जान भी जाए अगर, ना कोई मलाल रहें

ये जो गहरी अदा है अजब
अमृत भरी विदा है गजब
हरदम छाई रहे, ना कोई सवाल रहे
जान भी जाए अगर, ना कोई मलाल रहें

Tuesday, December 30, 2014
Topic(s) of this poem: love
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