तेरे हर सवाल का जवाब दूं
पहले, अंधेरी रात है चंद्रमा हो लें
शाम मेरी सुबह मेरी बंजर बंजर
प्यास मेरी बूंदों की रास न आए समंदर समंदर
पूनम का चांद तु पूर्णिमा हो लें
अंधेरी रात है चंद्रमा हो लें
सोच मेरी समझ मेरी जंतर-मंतर
जी रहा भूत मैं, दिल मेरा अस्थिपंजर
तु ही खयाल कर भावना हो लें
अंधेरी रात है चंद्रमा हो लें
जात मेरी पात मेरी तंतर तंतर
पी रहा घूँट मैं, मैं रहा जानवर जानवर
तु ही खयाल कर साधना हो लें
अंधेरी रात है चंद्रमा हो लें
टूटकर तारे भी जमीं पर नहीं आते
सितमगर ये नजारे भी उजाले नहीं लाते
तु ही खयाल कर देसना हो लें
अंधेरी रात है चंद्रमा हो लें
(डॉ. रविपाल भारशंकर)
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