एक इंसा की खोज में Poem by Dr. Ravipal Bharshankar

एक इंसा की खोज में

एक इंसा की खोज में, निर्भार अपनी मौज में
निकलता हूँ रोज मैं, एक इंसा की खोज में

कही आज जी लूं, तो मिल जाए वो
कही आज पी लूं, तो मिल जाए वो
कही आज डूब जाऊँ, इसी रोज मैं

एक इंसा की खोज में, निर्भार अपनी मौज में
निकलता हूँ रोज मैं, एक इंसा की खोज में

(डॉ. रविपाल भारशंकर)

Monday, December 29, 2014
Topic(s) of this poem: love
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