ईर्ष्या Poem by Ajay Srivastava

ईर्ष्या

बङो बङो को हो गयी धनवानो और अति शिक्षतो को भी हो गयी
क्या बच्चों, क्या युवा, क्या वृद्ध वर्ग सभी को भी हो गयी
इतनी हो गयी की आखँ से सुरमा भी कहने लगा बिना
आज्ञा के चला जा रहा पर हम तो हम है हमने भी
कह दिया इंटरनेट पहले से ही चल रहा है
इसमे शुनय की भी चोरी नही है 11
पर कया करू सरकार दुहाई है नेतिकतता सवाल उठा दिया
पर मन, दिल यह कहता है न यह चोरी, न यह नेतिकतता सवाल
अरे नादान यह सीधी - साधी जलन ईर्ष्या हो गयी है स्वीकार कयो नही कर लेते 11

COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success